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सर्व विदित है कि हमारे देश कि गाय साक्षत लक्ष्मी है। आज के संदर्भ में लक्ष्मी की व्याख्या रुपये, पैसे से की जा रही है। इस संदर्भ में भी एक देशी गाय को देखें तो वह अकेली प्रति माह लाखों रुपये देने में सक्षम है। इस विषय पर वर्ष 2003 से महर्षि वागभट्ट गौशाला स्थित ‘पंचगव्य अनुसंधान केन्द्र’ में शोधकार्य चल रहें हैं।। इस दौरान किये गये हजारों प्रयोग सत्यापित करते हैं कि एक देशी गाय प्रतिदिन गौबर, गौमूत्र और क्षीर (दूध) के माध्यम से लगभग 5 हजार रुपये की अमृत जीवन रक्षक औषधियां और अन्य प्रकार की वस्तुएं प्रदान करती है।
पंचगव्य औषधियों से पिछले 15 वर्षों से लगभग 30 हजार मरीजों पर अभ्यास करके देखा गया कि सभी असाध्य कहीं जाने वाली बीमारियां ठीक हो रही हैं.
अमर शहीद राजीव भाई का सपना था की भारत की गोमाता दान और दया पर नहीं बल्कि स्वावलंबी व्यवस्था पर निर्भर होनी चाहिए. इसी सोंच के साथ गाय के प्रति उनकी कर्तव्य निष्ठा साकार करने के लिए वर्ष 2012 में भारत सरकार के संददीय मण्डल द्वारा संचालित भारत सेवक समाज के सहयोग से पंचगव्य चिकित्सा पाठ्यक्रम का शुभारम्भ इंडियन सेल थेरेपी इंस्टिट्यूट, मदुरै के साथ मिलकर पंचगव्य गुरुकुलम ने किया. जिसके अंतरर्गत सर्वप्रथम 3 तरह के पाठ्यक्रम शुरू किये गए. 1) मास्टर डिप्लोमा इन पंचगव्य थैरेपी, 2) डिप्लोमा इन पंचगव्य थैरेपी और 3) सर्टिफिकेट कोर्स इन पंचगव्य थैरेपी।
इन पाठ्यक्रमों से पढ़कर दीक्षांत हुए गव्यसिद्ध डॉक्टर अपने-अपने क्षेत्र में असाध्य रोगों से पीड़ित रोगियों की चिकित्सा करके असाध्य रोगों से लोगों को स्वास्थ्य प्रदान कर रहें हैं। इस दौरान कई ऐसी बीमारियों कि चिकित्सा संभव हो सकी है जिसके बारे में दुनिया के सभी चिकित्सा पद्धति मौन हैं. हम चाहते है कि ऐसे अद्भुत परिणाम और अभ्यास के बारे में दुनिया के लोग जाने, भारतीय गाय की महिमा को पहचाने और कल तक जिस गाय को केवल हिन्दू धर्म का विषय बताया जाता था, उसमें अब असाध्य बीमारियों की चिकित्सा देखें.
वह समय अब दूर नहीं जब ऋषि सुश्रुत की पौराणिक शल्य चिकित्सा हमारे गाय की महत्ता से फिर से अग्रसर होगी। पंचगव्य अनुसंधान की देख-रेख में कई ऐलोपैथी शास्त्र के सर्जन डाॅक्टर इस काम में लगे हुए है और उन्हें 90 प्रतिशत तक सफलता मिली है। आशा है की 2016 तक पंचगव्य के माध्यम से भारत में शल्य चिकित्सा का मार्ग भी प्रशस्त होगा.
पंचगव्य चिकित्सा विज्ञान का यह अभ्यास दुनिया के सामने लाने का प्रयास ही पंचगव्य चिकित्सा महासम्मेलन है. इसे प्रत्येक वर्ष भारत के अलग – अलग राज्यों में अमर बलिदानी राजीव भाई के पूण्य और जन्म तिथि (काल भैरव अष्टमी) के दिन किया जाता है. तीन दिवसीय प्रथम चिकित्सा महासम्मलेन का आयोजन वर्ष 2013 में द्रविड़ भूमि के कांचीपुरम स्थित महर्षि वाग्भट गोशाला और चेन्नै में किया गया था. इस क्षेत्र के स्थल पूरण के अनुसार यहाँ सतयुग में ऋषि अत्री, ऋषि भारदवाज, ऋषि अगस्त, ऋषि कश्यप एवं ऋषि भृगु की तपोस्थली रही है। जिसमें महर्षि वाग्भट्ट गौशाला परिसर ऋषियों कि वनस्पति उद्यान एवं प्रयोगशाला रह चुका है।
सम्मेलन में पंचगव्य चिकित्सा के क्षेत्र में काम कर रहे विद्यार्थी, गव्यसिद्ध डॉक्टर अपने अनुभवों का संवाद प्रस्तुत करते हैं एवं विडियों प्रदर्शनी के माध्यम से पंचगव्य चिकित्सा विज्ञान पर प्रकाश डालते हैं. अन्य थेरेपी के डॉक्टर को भी अवगत कराया जाता है की असाध्य बीमारियों में पंचगव्य का कैसे उपयोग कर सकते हैं. असाध्य रोगों पर लघु फिल्म भी दिखाई जाति है. कुछ दुर्लभ बिमारी वाले रोगी अपने अनुभवों को भी रखते हैं.
अनुसंधान केन्द्र की योजना रही है कि इस प्रकार के चिकित्सा महासम्मेलन भारत के सभी नगरों में किया जाना चाहिए। अतः प्रति वर्ष भारत के विभिन्न नगरों में ऐसे पंचगव्य चिकित्सा महासम्मेलन आयोजित किये जा रहे हैं. जिस किसी भाई को अपने प्रदेश में सम्मेलन करवाना हो मोबाइल 09444 03 47 23 सम्पर्क कर सकते हैं।
प्रथम पंचगव्य चिकित्सा महासम्मेलन वर्ष 20 13 में महर्षि वागभट्ट गौशाला, कांचीपुरम में आयोजित हुआ. द्वितीय पंचगव्य चिकित्सा महासम्मेलन वर्ष 20 14 में महाराष्ट्र प्रदेश के सांगली-औदुम्बर महातीर्थ में आयोजित हुआ. तृतीये पंचगव्य चिकित्सा महासम्मेलन वर्ष 20 15 में राजस्थान प्रदेश के पुष्कर महातीर्थ में आयोजित हुआ. चतुर्थ पंचगव्य चिकित्सा महासम्मेलन वर्ष 20 16 में गुजरात प्रदेश के द्वारिका महातीर्थ में आयोजित हुआ. पंचम पंचगव्य चिकित्सा महासम्मेलन वर्ष 20 17 में हरियाणा प्रदेश के कुरुक्षेत्र महातीर्थ में आयोजित हुआ. षष्टम पंचगव्य चिकित्सा महासम्मेलन वर्ष 20 18 में केरल प्रदेश के कालडी महातीर्थ में आयोजित हुआ. सप्तम पंचगव्य चिकित्सा महासम्मेलन वर्ष 20 19 में ओड़िसा प्रदेश के जगनाथपूरी महातीर्थ में आयोजित हुआ. वर्ष 2020 एवं 2021 कोरोना के कारन बंदी रहा इसलिए पञ्चगव्य विद्यापीठम, कांचीपुरम परिसर में ही छोटे स्तर पर पंचगव्य चिकित्सा महासम्मेलन का वेबिनार आयोजित किया गया. वर्ष 2022 में योजना के अनुसार तेलंगाना प्रान्त के भाग्यनगर (हैदराबाद) में 18-20 नवम्बर 2022 को दसम पंचगव्य चिकित्सा महासम्मेलन का आयोजन किया गया है.
इस सम्मेलन में भाग लेने वाले प्रतिनिधियों को अनुभव प्रमाण पत्र प्रदान किया जाता है. जो विशेषज्ञ पंचगव्य की औषधियों पर अनुसंधान पत्र प्रस्तुत करते हैं उन्हें सम्मानित / पुरस्कृत भी किया जाता है.
पंचगव्य चिकित्सा महासम्मेलन में प्रति वर्ष 5 स्वर्ण पुरस्कार (नकद/स्वर्ण प्लेटिंग स्मृति चिन्ह) प्रदान किये जाते हैं. साथ ही अन्य पुरस्कार भी प्रदान किये जाते हैं. ये सभी पुरस्कार 5 अलग – अलग विषयों पर विशेष कार्य करने वाले गव्यसिद्धों को प्रदान किये जाते हैं. इस वर्ष भी विशेष कार्य करने वाले गव्यसिद्धों को पुरस्कृत किये जायेंगे.
1) अ.ब.राजीव भाई दीक्षित श्रेष्ठ पंचगव्य चिकित्सा सेवा सम्मान
2) अ.ब.राजीव भाई दीक्षित श्रेष्ठ पंचगव्य चिकित्सालय सम्मान
3) अ.ब.राजीव भाई दीक्षित श्रेष्ठ पंचगव्य विज्ञानी सेवा सम्मान
4) अ.ब.राजीव भाई दीक्षित श्रेष्ठ पंचगव्य प्रचारक सम्मान
5) अ.ब.राजीव भाई दीक्षित श्रेष्ठ पंचगव्य उत्पादक सम्मान
इसके अलावा भी कई सम्मान दिए जाते हैं. जैसे
1) अ.ब.राजीव भाई दीक्षित श्रेष्ठ पंचगव्य पत्नी सम्मान
2) अ.ब.राजीव भाई दीक्षित श्रेष्ठ पंचगव्य सिद्धर सम्मान (पुराने गव्यसिद्ध्ररों में से.)
3) अ.ब.राजीव भाई दीक्षित श्रेष्ठ पंचगव्य परिवार सम्मान
इतना ही नहीं, सम्मलेन के नियोजन के निमित्त भी कई सम्मान दिए जाते हैं. इसी दोरान अगले महासम्मेलन की घोषणा भी की जाती है.
1) पहला महासम्मेलन कट्टावक्कम (कांचीपुरम) और चेन्नै में हुआ.
2) द्वितीये महासम्मेलन औदुम्बर (महाराष्ट्र) और सांगली में हुआ.
3) तृतीये महासम्मेलन पुष्कर (राजस्थान) में होने जा रहा है. (4-6 दिसंबर 2015)
4) चतुर्थ महासम्मेलन (गुजरात) द्वारिका में संपन्न हुआ. (19 से 21 नवम्बर 2016)
5) पंचम महासम्मेलन (हरियाणा) कुरुक्षेत्र में संपन्न हुआ.
6) षष्टम महासम्मेलन (केरल) कालडी में संपन्न हुआ. (28 से 30 नवम्बर 2018)
7) सप्तम महासम्मेलन (ओड़िसा) जगरनाथ पूरी में संपन्न हुआ. (17 से 19 नवम्बर 2019)
8) दसम महासम्मेलन (तेलंगाना) भाग्यनगर में संपन्न होने जा रहा है. (18 से 20 नवम्बर 2019)