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पुष्कर। पंचगव्य गुरुकुलम् द्वारा आयोजित तृतीय पंचगव्य चिकित्सा महासम्मेलन, ४ से ६ दिसम्बर २०१५ के बीच राजस्थान के तीर्थराज पुष्कर में संकल्प के साथ संपन्न हुआ। सम्मेलन का मुख्य विषय कॉस्मिक ऊर्जा का चिकित्सा के क्षेत्र में भूमिका, एलोपैथी चिकित्सा की कानूनी व वास्तविक सीमा, मानव शरीर पर पंचगव्य चिकित्सा की अलौकिक पकड़। साथ ही सिकलसेल अनीमिया/ थैलिसिमिया पंचगव्य की औषधियों से किस प्रकार पूरी तरह से ठीक हो रहा है।
पद यात्रा की आगवानी करते हुए दाएँ तरफ से सेवा रत्न गव्यसिद्धाचार्य निरंजन वर्मा, सूर्य योगी उमाशंकर जी एवं चित्र कूट धाम के महंथ पाठक जी.
पदयात्रा की आगवानी करते हुए केरल के गव्यसिद्ध डॉ.गण. इस पद यात्रा में भारत भर से आये हुए छ सो गव्यसिद्ध डोक्टरों ने भाग लिया. जिनके हांथों में पंचगव्य और गोमाता की रक्षा से सम्बन्धी पट्टियाँ रही. जैसे “गोमाता से निरोगी भारत.” डॉक्टर समूह पुष्कर के ब्रह्मा जी के मंदिर में पहुँच कर गोपूजा किया. इसके बाद ब्रह्मा जी का दर्शन किया. इस दिन ब्रह्मा जी का मंदिर भारत भर के गव्यसिद्ध डॉक्टरों से खाचा खच भर गया.
महासम्मेलन का शुभारंभ पुष्कर के पारिक आश्रम से ब्रह्मा मंदिर तक पद यात्रा से शुरु हुआ। जिसकी आगवानी सूर्ययोगी ऊमाशंकर जी, पंचगव्य गुरुकुलम के सेवारत्न गव्यसिद्धाचार्य निरंजन वर्मा एवं चित्रकुट तीर्थ के महंथ पाठकजी ने किया। इस मौन पदयात्रा में गऊमाँ के गव्यों पर आधारित सूत्रों का प्रदर्शन हुआ।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में सूर्ययोगी ऊमाशंकरजी पधारे। जिन्होंने भूख, प्यास और नींद पर विजयी प्राप्त किया है। उन्होंने तीन दिनों तक सामूहिक रूप से सूर्ययोग का प्रशिक्षण दिया। अपने उद्बोदन में स्पष्ट किया कि मनुष्य शरीर का सीधा संबंध कॉस्मिक ऊर्जा है। मनुष्य सतत् सूर्य की किरणों से निकलने वाली ऊर्जा के साथ जुड़ा हुआ है। यह ऊर्जा जीव जगत को पांच यौगिक तत्वों के रूप में मिलते रहता है। इन्हीं तत्वों की पूर्ति गऊमाँ अपने गव्यों से करती है।
कार्यक्रम में विशिष्ठ अतिथि के रूप में मद्रास उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और चिकित्सा क्षेत्र के विवादों को सुलझाने वाले बड़े जानकार ए.कुमरन पधारे। उन्होंने पंचगव्य चिकित्सा थेरेपी की कानूनी मान्यता पर उद्बोदन देते हुए कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं की भारत सरकार द्वारा संचालित इस चिकित्सा थेरेपी कहीं से भी कमजोर है। इस थेरेपी के तहत तैयार डॉक्टरों के पंजिकरण और उनके द्वारा चिकित्सा अभ्यास के लिए दिए जाने वाले प्रमाण पत्र के बारे में कहा कि मद्रास उच्च न्यायालय का आदेश पूरे देश में देश के लिए है। अलग – अलग राज्यों में कानूनी आदेश लेने की कोई आवश्यकता नहीं है। उन्होंने एलोपैथी चिकित्सा की सीमा पर भी कहा कि उनके पास भी चिकित्सा करने की सीमा तय है। उन्होंने विधि के ‘सेक्शन जे’ के हवाले से कहा कि एलोपैथी द्वारा ५१ प्रकार के रोगों में चिकित्सा करने का दावा नहीं किया जा सकता। लेकिन पंचगव्य चिकित्सा की कोई सीमा नहीं है। इनके संपूर्ण व्याख्यान को पंचगव्य डॉट ओ आर जी पर देखा जा सकता है।
कार्यक्रम में विशिष्ठ अतिथि के रूप में इंडियन सेल थेपेरी के निदेशक डॉक्टर जी मणी ने अपने उद्बोदन में कहा कि आज का युग ‘वेलनेश’ (स्वस्थ्य होने का) आंदोलन का है। सभी को निरोगी होने का है। इस आंदोलन में पंचगव्य थेरेपी की बड़ी भूमिका है। उन्होंने इसके कुछ खास करण गिनाए। १) एलोपैथी चिकित्सा के युग की समाप्ति का समय शुरु होना, २) पंचगव्य औषधियों का गऊमाँ से सहज रूप में उपलब्ध होना, ३) पंचगव्य में डॉक्टर होने की प्रक्रिया का सहज और सरल होना। इनके संपूर्ण व्याख्यान को पंचगव्य डॉट ओ आर जी पर देखा जा सकता है।
कार्यक्रम के दूसरे दिन इस वर्ष तैयार हुए छ: गव्यसिद्धाचायों का दीक्षांत सूर्ययोगी उमाशंकरजी ने कराया। जिसके विवरण इस प्रकार हैं।
मध्य में सूर्य योगी उमाशंकरजी उनके बाएँ सेवारत्न गव्यसिद्धाचार्य डॉ. निरंजन कु. वर्मा सभी अभी तक के सभी गव्यसिद्धाचर्यों के साथ. बाएं से १) गव्यसिद्धाचार्य डॉ. विशाल गुप्ता 2) गव्यसिद्धाचार्य डॉ. अजित शर्मा 3) गव्यसिद्धाचार्य डॉ. हरेश ठाकर 4) गव्यसिद्धाचार्य डॉ. विनोद 5) गव्यसिद्धाचार्य डॉ. मदन सिंह कुशवाहा 6) गव्यसिद्धाचार्य डॉ. मिलिंद जिभकाते 7) गव्यसिद्धाचार्य डॉ. सुरेश वे गरड. 8) गव्यसिद्धाचार्य डॉ. नितेश च ओझा.
बाएँ तरफ से गव्यसिद्धाचार्य डॉ.विकास गुप्ता, मोदीनगर (उत्तर प्रदेश)
गव्यसिद्धाचार्य डॉ.अजीत शर्मा, व्यावर (राजस्थान)
गव्यसिद्धाचार्य डॉ.हरेश ठाकर, खेरालू (गुजरात)
गव्यसिद्धाचार्य डॉ.विनोद चहल, केथल (हरियाणा)
गव्यसिद्धाचार्य डॉ.मदन सिंह कुशवाहा, टाटानगर (झारखंड)
साथ में सेवारत्न गव्यसिद्धाचार्य डॉ. निरंजन के वर्मा
एवं सूर्य योगी उमाशंकरजी, उनके दायें तरफ से
गव्यसिद्धाचार्य डॉ.मिलिंद जिभकाटे, मोदीनगर (महाराष्ट्र)
गव्यसिद्धाचार्य डॉ.मदन सिंह कुशवाहा, टाटानगर (झारखंड)
गव्यसिद्धाचार्य डॉ.सुरेश व्यंकट राव गरड, भाग्यनगर (तेलंगाना.)
एवं साथ में गव्यसिद्धाचार्य डॉ.नितेश चन्द्रशेखर ओझा, सांगली (महारास्ट्र)
सूर्ययोगी उमाशंकर जी एवं पंचगव्य गुरुकुलपति सेवारत्न गव्यसिद्धाचार्य निरंजन कु. वर्मा से गव्यसिद्धाचार्य की उपाधि प्राप्त करते हुए डॉ. विशाल गुप्ता
सूर्ययोगी उमाशंकर जी एवं पंचगव्य गुरुकुलपति सेवारत्न गव्यसिद्धाचार्य निरंजन कु. वर्मा से गव्यसिद्धाचार्य की उपाधि प्राप्त करते हुए डॉ. विनोद
सूर्ययोगी उमाशंकर जी एवं पंचगव्य गुरुकुलपति सेवारत्न गव्यसिद्धाचार्य निरंजन कु. वर्मा से गव्यसिद्धाचार्य की उपाधि प्राप्त करते हुए डॉ. सुरेश वे गरड
सूर्ययोगी उमाशंकर जी एवं पंचगव्य गुरुकुलपति सेवारत्न गव्यसिद्धाचार्य निरंजन कु. वर्मा से गव्यसिद्धाचार्य की उपाधि प्राप्त करते हुए डॉ. अजित शर्मा
सूर्ययोगी उमाशंकर जी एवं पंचगव्य गुरुकुलपति सेवारत्न गव्यसिद्धाचार्य निरंजन कु. वर्मा से गव्यसिद्धाचार्य की उपाधि प्राप्त करते हुए डॉ. मदन सिंह कुशवाहा
३१ वर्षिय गो चेतना एवं पर्यावरण यात्रा में गउकथाओं के माध्यम से किए जा रहे प्रचार-प्रसार के लिए साध्वियों को सामुहिक रूप से अमर बलिदानी राजीव भाई दीक्षित श्रेष्ठ पंचगव्य प्रचारक सम्मान एवं नकद पुरस्कार प्रदान करते हुए सूर्य योगी उमा शंकर जी.
महासम्मेलन में परंपरा के अनुरूप इस वर्ष भी उत्कृष्ठ कार्य करने वालों को स्वर्ण पदक एवं नकद सम्मान से सम्मानित किया गया। जो इस प्रकार है।
अ.ब.राजीव भाई दीक्षित श्रेष्ठ पंचगव्य प्रचारक सम्मान (गोल्ड मेडल)
क) गव्यसिद्ध डॉक्टर कोयना श्याम राठोड
ख) गव्यसिद्ध डॉक्टर योगिता दीलिप पाटिल
ग) गव्यसिद्ध डॉक्टर चौधरी सुमति श्रीराम
घ) गव्यसिद्ध डॉक्टर प्रतीमा चौबे
राजस्थान में ३१ वर्षिय गो चेतना एवं पर्यावरण यात्रा हेतु गउकथाओं के माध्यम से किए जा रहे प्रचार-प्रसार के लिए पंचगव्य गुरुकुलम् चारों साध्वियों को सामुहिक रूप से इस वर्ष का अमर बलिदानी राजीव भाई दीक्षित श्रेष्ठ पंचगव्य प्रचारक सम्मान एवं नकद पुरस्कार प्रदान करता है।
समृति चिन्ह के साथ रु. ११,१११.००/-
गव्यसिद्ध विकास तारलेकर, महारास्ट्र को अ.ब.राजीव भाई दीक्षित श्रेष्ठ पंचगव्य निर्माता सम्मान (गोल्ड मेडल) प्रदान करते हुए सूर्य योगी उमा शंकर जी.
अ.ब.राजीव भाई दीक्षित श्रेष्ठ पंचगव्य निर्माता सम्मान (गोल्ड मेडल)
पंचगव्य की औषधियों के निर्माण के क्षेत्र में किए गए कार्य के लिए इसका चुनाव किया गया।
क)गव्यसिद्ध विकास तारलेकर, महारास्ट्र
समृति चिन्ह के साथ रु. १,१११.००/-
अ.ब.राजीव भाई दीक्षित श्रेष्ठ पंचगव्य विज्ञानी सम्मान (गोल्ड मेडल)
पंचगव्य की औषधियों के निर्माण के क्षेत्र में नए उपकरणों के निर्माण की दिशा में किए गए कार्य के लिए इसका चुनाव किया गया।
क)गव्यसिद्ध के. चन्द्रशेखर पिल्लै, केरल
समृति चिन्ह के साथ रु. २,५००.००/-
ख) गव्यसिद्धके. जी अनील कुमार, केरल
समृति चिन्ह के साथ रु. २,५००.००/-
अ.ब.राजीव भाई दीक्षित श्रेष्ठ पंचगव्य गौरक्षक सम्मान (गोल्ड मेडल)
गौरक्षा की दिशा में किए गए कार्य के लिए इसका चुनाव किया गया।
क) गव्यसिद्ध समीर राजाराम झुंझुरने, महाराष्ट्र
समृति चिन्ह के साथ रु. १,१११.००/-
ख) गव्यसिद्ध सुधीर हंगे शिवाजी, महाराष्ट्र
समृति चिन्ह के साथ रु. १,१११.००/-
अ.ब.राजीव भाई दीक्षित श्रेष्ठ पंचगव्य चिकित्सा सेवा केन्द्र सम्मान (गोल्ड मेडल)
क)गव्यसिद्ध डॉक्टर थोरत महेश शरद, पूणे, महाराष्ट्र
समृति चिन्ह के साथ रु. १,१११.००/-
ख)गव्यसिद्ध डॉक्टर एस. मुरली एवं गव्यसिद्ध कृपा मुरली, तिरुचिरापल्ली, तमिलनाडु
समृति चिन्ह के साथ रु. १,१११.००/-
अ.ब.राजीव भाई दीक्षित श्रेष्ठ पंचगव्य पति/पत्नी सम्मान (गोल्ड मेडल)
क)गव्यसिद्ध डॉ.आरती कोरे एवं अजीत कुमार कोरे, तेलंगना
समृति चिन्ह
ख) गव्यसिद्ध डॉ.दीया बाबू एवं उनके पति गव्यसिद्ध श्याम पेनिकल, केरल
समृति चिन्ह
प्रथम दिवस के कार्यक्रम में वरिष्ठ गव्यसिद्धों ने अपने चिकित्सा के अनुभवों को रखा। इस शृंखला में गव्यसिद्ध डॉ.दामोदर सेट्ठी ने कहा कि पंचगव्य चिकित्सा का आंदोलन कर्नाटक में शुरु हो गया है। गऊमाँ के गव्यों का असाध्य कहे जाने वाले रोगों पर अद्भुत परिणाम आ रहा है। गव्यसिद्धाचार्य नितेश ओझा ने कहा कि अब एलोपैथी के डॉक्टर भी पंचगव्य चिकित्सा विज्ञान को समझने लगे हैं और उनका झुकाव इस ओर बढ़ रहा है। गव्यसिद्ध सुभाष पाटिल ने गऊमाँ की जैविक कृषि में भूमिका पर एक सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि निरोगी शरीर के लिए जैविक अनाज, फल और सब्जियों की उपलब्धता ही रास्ता है। और गऊमाँ के बिना जैविक कृषि किया नहीं जा सकता।
कार्यक्रम के द्वितीय दिवस रात्रि सत्र में राजस्थान के कालबेलिया नृत्य की प्रस्तुति की गई। साथ ही गव्यसिद्ध परिवार के बच्चों ने ‘गऊमाँ की तरफ से फतवा सुना रहा हूं’ नृत्य प्रस्तुत किया। कालबेलिया नृत्य राजस्थानी युद्धकला से निकली है जिसमें शरीर के संतुलन की अद्भुत प्रस्तुति होती है। आज भले ही कालबेलिया परिवारों को निम्न जाति की शृंखला में रखा गया है लेकिन उनका इतिहास गौरवमय है। अत: इस जाति के सम्मान में उपस्थित गव्यसिद्ध परिवारों ने उनके साथ कदम के कदम मिलाकर नृत्य किया।
तीन दिवसीय कार्यक्रम के दौरान ब्रह्मकाल का सत्र परंपरा के अनुरूप सेवारत्न गव्यसिद्धाचार्य निरंजन वर्मा ने लिया। जिसमें उपस्थित सभी गव्यसिद्धों को वर्ष २०१५ में शोध की गई नई औषधियों के निर्माण और उपयोग को सिखाया। विशेष रूप से पित्ताशय और गुर्दा में पत्थर को निकालने की सरल प्रक्रिया को बतलाया गया। इस दौरान चिकित्सा में आए अनसुलझे पहलुओं को भी सुलझाया गया।
कार्यक्रम के दौरान देश के विभिन्न प्रदेशों में प्रारंभ किए जा रहे पंचगव्य गुरुकुलम् (विस्तार) को आज्ञा पत्र प्रदान किए गए। जिनके विवरण इस प्रकार हैं।
औदुम्बर, सांगली, महाराष्ट्र
गड़चिरैली, विदर्भ, महाराष्ट
खेरालू, गुजरात
टाटानगर, झारखंड
सोनभद्र, उत्तर प्रदेश
भाग्य नगर, तेलंगना
आर.आर.जिला, तेलंगना
जयपुर, राजस्थान
व्यावर, राजस्थान
कोटा, राजस्थान
नई मुम्बई, महाराष्ट्र
कार्यक्रम के तृतीय दिवस को सम्मान समारोह के रूप में मनाया गया। जिसमें १४१ नए गव्यसिद्धों का दीक्षांत सूर्ययोगी उमाशंकर जी ने किया। सभा के अंत में कार्यक्रम के नियोजन में अपनी सेवा प्रदान करने वाले सेवाभावियों को भी सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम का संचालन स्वयं सेवारत्न गव्यसिद्धाचार्य डॉ.निरंजन वर्मा ने किया। इसका सहयोग गुजरात के प्रभारी गव्यसिद्धाचार्य डॉ.हरेश ठाकर ने किया। सभा के अंत में राजस्थान प्रभारी गव्यसिद्धाचार्य डॉ.अजीत शर्मा ने सभी को धन्यवाद दिया।